अधूरा सफ़र

प्यार भरी बातों पर भी लड़ना,
मेरी आदत-सी बन गया था।
सच कहूँ तो तू मेरी,
इवादत बन गया था।।
मेरी तक़लिफों पर तेरा मायूस होना,
कोई इनायत नहीं थी।
बेरुखे रहे एक-दूजे से,
मगर कोई शिकायत तो नहीं थी।।
अरमान! जो इन आंखों ने सजाये,
हक़िकत करना उन्हें नाकाम रहा।
"एक खेल" से शुरु,और अलबिदा पर खत्म,
यही हमारी सोहबत का अंजाम रहा।।
अब रूह-व-रूह होना तुझसे,
नाचीज़ के किस्मत में नहीं।
रह गई बस निशानी तेरी,
इन तस्वीरों में ही छुपकर कहीं।। 
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                         ■▪नीलिमा मण्डल।।