जहाँ बच्चों के आँसू ही हैं माँ-बाप का सबसे बड़ा कष्ट,
फिर क्यूँ नाबालिक सताते वक्त हो जाती है इनकी बुद्धि भ्रष्ट।
जब एक रोम खिच जाने से इन्सान झल्ला जता है,
तो क्या एक बच्ची की चीख़ से तुम्हे दर्द नहीं होता?
तुझे जन्म देने वाली भी तो आखिर एक औरत है,
मत भूल,
तेरे घर की तरह हर बेटी अपने घर की शौहरत है।
अपनी हैबनीयत का शिकार बनाते हो तुम उसे,
जिसका अदा कभी कर्ज़ नही होता।।
तेरी हवस की प्यास ने छीन ली कितनो की जिन्दगी,
सांस लेकर भी दम घुतटा है,मेहसूस नही एक भी लड़की।
जब जला देता ह तू जिन्दा किसी नरी को,
उसके उन हालतों का कोई दवा-कोई मर्ज़ नहीं होता।।
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ऊपरवाला भी शारिरीकता को दो प्राणियों का मेल समझता है,
मगर तू बेरहमी इसे खेल समझता है।
तू कब समझेगा और कैसे समझाएं?
अपनो की फिक्र नहीं, इतनी क्रूर सोच कैसे आयी?
खुद की हो तो "लक्ष्मी" दूसरों की "माल-पटाका",
क्या घर की इज्जत बचाना आदमियों का फर्ज़ नहीं होता?
■▪नीलिमा मण्डल।।